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व्यंग्य

सावधान! अपराध कम हो रहे हैं!

सुभाष चंदर


मुख्‍यमंत्री ने विशाल आम सभा में घोषणा की कि राज्‍य से अपराध कम हो जाएँगे।

प्रदेश के डी.जी.पी. ने घोषणा सुनी। ए.डी.जी. को पास कर दी। ए.डी.जी. ने आई.जी. को। इस प्रकार ये घोषणा जुबान की पटरी पर चलते-चलते थाना इंचार्ज के कानों में पहुँची। थाना इंचार्ज को कानों में इन्‍फैक्‍शन का खतरा लगा। सो उसने थाने में मीटिंग बुलाई। दरोगाओं से लेकर मुंशी-सिपाहियों, दीवान जी के कानों में आदेश की सप्‍लाई हो गई कि चाहे जैसे भी हो अपराध कम करना है। अब थाना इंचार्ज निश्चिंत थे।

सबने आदेश सुना, गुना और कार्रवाई शुरू हो गई। कार्रवाई का कुछ आँखों देखा-कानों सुना टाइप का विवरण यहाँ प्रस्‍तुत है :

दृश्‍य- 1

थाने के अंदर एक मरगिल्‍ला सा आदमी घुसा और आते ही जोर से चिल्‍लाया : 'हुजूर माई-बाप मेरी बच्‍ची को बचा लो, वो नीच गुंडा मेरी बच्‍ची को बरबाद कर देगा। साहब... मेरी रिपोर्ट लिख लो साब... मर जाऊँगा... बरबाद हो जाऊँगा।'

'अबे... क्‍यों हल्‍ला कर रहा है? दूँ क्‍या एक कान के नीचे... हाँ... बोल... कौन सा पहाड़ टूट पड़ा' ...किस बात की रिपोर्ट लिखानी है' थाने के मुंशी ने दियासलाई की सींक से कान खुजाते हुए फर्माया।

'हुजूर... माई बाप... मेरी 14-15 बरस की बच्‍ची को वो शेखू आए-दिन छेड़ता है। उस पर गंदी-गंदी फब्तियाँ कसता है। आज... तो हुजूर... उसने उसका हाथ पकड़ कर बदतमीजी भी की।' कहते-कहते उसकी रूलाई छूट पड़ी।

'स्‍साले... कैंसा बाप है तू... तेरी बेटी से छेड़खानी होती है और तू यहाँ टेसुए बहा रहा है। मार स्‍साले को... हाथ पैर तोड़ दे। हम स्‍साले की रिपोर्ट भी नहीं लिखेंगे, बोल अब तो खुश।' इस बार मुंशी जी उवाचे।

'साहब... क्‍या कहते हो... मैं झुग्‍गी-झोपड़ी में रहने वाला... गरीब... मरगिल्‍ला सा आदमी... कहाँ वो कल्‍लू कबाड़ी का साँड़... क्‍या वो मुझ से पिटेगा... मुझे तो एक धक्‍का देगा, मैं गिर जाऊँगा। साहब, हम पर दया करो, उस गुंडे को अंदर कर दो... उसे तो पुलिस ही सुधार सकती है...' वो भूखा-नंगा फिर भिनभिनाया।

'स्‍साले, पुलिस ने ठेका ले रखा है सबको सुधारने का... चल भाग यहाँ से... वरना लगाऊँगा पिछवाड़े पे डंडे... नानी याद आ जाएगी।' मुंशी ने कहते हुए डंडा टेबिल पर ही फटकार दिया।

'हुजूर... माई बाप... रहम करो... वो कमीना शेखू कर रहा था कि वो मेरी बेटी को उठाकर के ले जाएगा... मैं उसका कहीं ब्‍याह करूँगा तो वो उसे तेजाब फेंककर जला देगा... हुजूर... कुछ करो... वरना मैं यहीं भूखा-प्‍यासा जान दे दूँगा...'

'स्‍साले... तेरी माँ की... पुलिस को धमकी देता है। स्‍साले, तेरी लौंडिया ही छिनाल होगी। उसके साथ इश्‍क की कबड्डी खेलती होगी, तभी तो कबाड़ी का लौंडा पीछे पड़ रहा है... जा के पहले अपनी लौंडिया को सँभाल, आ गया, पुलिस को तंग करने।'

'हुजूर... माई बाप... मेरी बच्‍ची तो मुश्किल से 13-14 साल की है... सातवीं में पढ़ती है... वो... ये सब कैसे करेगी... हुजूर... रहम करो। उस शेखू को गिरफ्‍तार कर लो वरना वो गुंडा... कुछ कर देगा तो मैं किसी को क्‍या मुँह दिखाऊँगा...' मरगिल्‍ला फफक-फफक कर रो पड़ा।

'तेरी ऐसी की तैसी... स्‍साले... हम प्‍यार से समझा रहे हैं... समझ ही नहीं रहा... अबे वो गिरधारी... लगा स्‍साले के पिछवाडे पे चार डंडे... अभी अक्‍ल आ जाएगी...' मुंशी ने डंडा एक्‍सपर्ट गिरधारी को आदेश दिया।

गिरधारी ने आदेश पर अमल शुरू कर दिया। फट... फट... फट... फट... आह मर गया... हाय रे... छोड़ दो... सिपाही जी... हाय... मर गया... जैसी कुछ आवाजे़ं आई। भूखा-नंगा पिछवाड़ा सहलाते-सहलाते भाग गया।

मुंशी ने सादे कागज पर एंट्री की - एक अपराध कम हो गया।

दृश्‍य - 2

चौराहे का एक दृश्‍य...

चार मवाली टाइप लड़के एक खोमचे वाले से हॉकी खेल रहे है। उनकी हॉकियाँ चल रही हैं... खोमचे वाले की चीखें उनसे कंपटीशन कर रही है। दो सिपाही इस दृश्‍य को देखकर ठिठकते हैं। वे पहले चार हट्टे-कट्टे लड़के देखते हैं... उनके हाथ में सजी हॉकियाँ देखते हैं... खोमचे वाले की औकात को न्‍याय की तराजू पर तोलते हैं... फिर आगे बढ़ जाते हैं... खोमचे वाले की चीखें उनका पीछा करती हैं। पर वे नहीं रुकते... निर्णय लेने से पहले वे ठिठकते हैं। उनकी नजरें फिर हॉकियों पर पड़ती हैं... ज्ञान आता है कि हॉकियाँ पैसे नहीं उगलती, मार उगलती है। फिर वे आगे निकल जाते हैं, इस बार खोमचे वाले की चीखें पीछे छूट जाती हैं।

पुलिसियों को संतोष है, उन्‍होंने घाटा सहकर भी, अपने हिस्‍से का अपराध तो कम कर ही लिया। अपराध मुक्ति की एक एंट्री और बढ़ जाती है।

दृश्‍य- 3

'दरोगा जी, लुट गया, बर्बाद हो गया... मेरी जीवन भर की गाढ़ी कमाई लुट गई।'

'अबे क्‍या हुआ, कुछ बोलेगा भी'

'साब जी, मेरे एटीएम से डेढ़ लाख रुपये निकल गए हैं बेटी की शादी के लिए जोड़े थे - '

'ओ बेटे... रईस का बच्‍चा है... अबे सुन बे... दीवान जी, बलवंदर... राम चंदर... गरीब आदमी एटीएम में नोट जोड़ता है... हा... हा... हा... ठहाकों की आवाज...'

'अबे चुप... हाँ... बे गरीब आदमी... एटीएम से किसी ने रुपये कैसे निकाल लिए। कार्ड तो तेरे पास है ना? पूरी कहानी सुना...'

'दरोगा जी, मैं पिछले इतवार को एटीएम से पैसे निकालने गया था। वहाँ मशीन खराब थी। मैंने तीन-चार बार कोशिश की - पैसे नहीं निकले। तभी दो लड़के आए बोले, अंकल हम कोशिश करते हैं...'

'हुम्‍म... तो उल्‍लू पट्ठे... तूने उन्‍हें कार्ड दे दिया और उन्‍होंने बदल दिया... यही ना... हाँ... साब जी... बिल्‍कुल यही बात...'

'और हाँ... उन्‍होंने तेरे एकाउंट से लाखें रुपये की खरीदारी कर ली... क्‍यों यही ना...'

'हाँ... साब जी... पर आपको कैसे पता?'

'बेटे... पुलिस अंतर्यामी होती है... क्‍यों रामचंदर, बलवंदर... क्‍यों दीवान जी... हा... हा... हा... बेटे ऐसे केस रोज आते हैं...'

'आपको सब पता है तो साब जी... आप उन लुटेरों को पकड़ते क्‍यों नहीं... साब जी... मेरी रिपोर्ट लिख लीजिए... और उन्‍हें पकड़कर मेरा पैसा वापस दिलाइए...'

'भाग बे... आया... पैसा वापस लेने वाला... स्‍साले पुलिस के पास क्‍या यही काम रह गया है कि तेरे दो चार लाख रुपये ढुँढ़वाती रहे... भाग यहाँ से... अबे रामचंदर... एस.पी. साहब का टॉमी खो गया है उसे भी ढूँढ़ने चलना है - '

'साब जी... मैं मर जाऊँगा। मेरी लड़की की शादी कैसे होगी?'

अब तो शादी करने की जरूरत क्‍या है यहीं भेज दे, हमारे बलवंदर की बीवी यहाँ नहीं है... वो तेरी लौंडिया के साथ... क्‍या कहते हैं... वो... हाँ... लिव इन में रह लेगा... बोल भेजेगा...'

'साब जी... आप भी बहू बेटियों वाले हैं... ऐसा कहना आपको ठीक लगता है... कुछ तो तमीज रखिए...'

'स्‍साले हम को तमीज सिखाएगा, पुलिस को तमीज सिखाएगा। ओए... बलवंदर बाँध के डाल दे... साले को हवालात में... तभी छोड़ियो... जब तेरी लिव इन का जुगाड़ हो जाए...'

वातावरण में भेड़ियों के गुर्राने और बकरी के मिमियाने की आवाजें आती हैं।

रिपोर्ट लिखाने आई बकरी जाते समय अपने नुक्‍सान में पाँच सौ रुपये और बीस डंडों की मरम्‍मत और जोड़ लेती है।

दरोगा जी हिसाब लगाते हैं, लो अपराध की एक एंट्री और कम हो गई।

दृश्‍य- 4

बारह बजे रात का समय है। थाने में दरोगा जी से लेकर सिपाही जी तक नींद की पेट्रोलिंग ड्यूटी पर हैं। तभी थाने में फोन घनघनाया। दरोगाजी ने ऊँघते हुए फोन उठाया और उबासी और गाली एक साथ बाहर निकालते हुए उवाचे - कौन है बे भूतनी के मादर... स्‍साले सोने भी नहीं देते। हाँ बोल... कौन बोल रहा है। और बता कौन सा बम फट गया तेरे पिछवाड़े में...। उधर से रोबदार आवाज आई - 'सेठ राम दयाल बोल रहा हूँ, ज्‍वाइंट सेकेट्री होम का साढ़ू...'

दरोगा जी ने नींद भरी आँखें पूरे जतन से खोलीं, जुबान में मिश्री घोली और बड़े आदर से उवाचे - 'माफ करना सेठ जी... दिन भर की भागा दौड़ी के बाद यूँ ही आँख लग गई थी। सो नींद की कल्‍लाहट में कुछ बोल गया। अच्‍छा बताइए, क्‍या बात है, कैसे फोन करने की जहमत की?'

दमदार आवाज का रोब कई ग्राम बढ़ गया। टेलीफोन के रिसीवर से फिर आवाज आई - 'सुनो हमारे पुराने बंगले में आज शाम को डकैती पड़ी है। उस समय घर में सिर्फ घर की औरतें थीं। लाखें रुपये नकद और जेवर मिलकार सात-आठ लाख की लूट हुई है। जल्‍दी आइए।'

दरोगा ने मन में गालियों का पानी भरा और आदर के साथ फोन के मुँह में उलोच दिया - 'सेठ जी, हम अभी पहुँचते हैं - आप चिंता ना करें। इन डाकुओं की तो हम... में डंडा घुसेड़ देंगे। स्‍सालों ने बडें साब तक के घर में डकैती डाली हैं - हम आ रहे हैं सेठ जी... जय हिंद।'

इसके बाद फोन का रिसीवर रख दिया। दरोगा जी ने थानेदार जी को जगाया। मामले का फलसफा समझाया। नतीजतन थानेदार जी को दारू के चार पैगों के बाद बढ़िया नींद की जगह नींबू पानी का सेवन करना पड़ा।

सेठ जी के घर जाकर थानेदार जी ने सेठ जी को समझाने की भरपूर कोशिश की कि वो एफआईआर के चक्‍कर में ना पड़ें। वे बिना एफआईआर के ही केस की माँ-बहन एक कर देंगे। डकैतों को पकड़ लेंगे... वगैरहा... वगैरहा। पर सेठ जी नहीं माने। हार कर थानेदार जी को कहना पड़ा कि रिपोर्ट लिखने वाले मुंशी जी के घर जच्‍चगी का मामला है। कल सुबह रपट लिखा देंगे। अगले दिन मुंशी जी के हाथों में दर्द हो गया। उससे अगले दिन उनके जोड़ों में दर्द उभर आया। तीसरे दिन उन्‍हें मलेरिया का भयंकर अटैक पड़ा। यानी तीन दिन तक मुंशी जी रपट नहीं लिख सके। हारकर सेठ जी ने साढ़ू भाई यानी ज्‍वाइंट सेक्रेटी को फोन खटखटा दिया। वहाँ से थानेदार को फोन आया। सीनियरिटी ने जूनियरिटी को हड़का लिया। थानेदार जी को एफआईआर भी लिखनी पडी और हफ्‍ते भर में केस सोल्‍व करने का वादा भी करना पड़ा। सेठ साहब गर्वित हुए। थानेदार जी को चिंतित होने का दौरा पड़ गया। हाय... रपट दर्ज हो गई। इलाके में एक अपराध की बढ़ोत्‍तरी हो गई। उसी शाम लालपरी की बोतल के साथ, थाने में बैठक हुई। थानेदार जी, दरोगा जी, दीवानजी, मुंशीजी वगैरह सिर से सिर और होटों से जाम लगाकर बैठ गए। हल निकल आया। पुलिसिया कार्रवाही शुरू हो गई।

दिसंबर की ठंडी रात में तीन बजे पुलिस की जीप सेठ जी के बंगले के बाहर थी। सेठ जी को जगाया गया। उन्‍हें आदर सहित सूचना दी गई कि घर की महिलाओं को थाने भेज दें। कुछ संदिग्‍ध लोग पकड़े गए हैं। उनकी पहचान करनी है। ठंड में सिकुड़ती-आधी सोती-जागती औरतें थाने पहुँची। संदिग्‍धों की शिनाख्‍त की, पर उनकी शक्‍ल-सूरत डकैतों से अलग निकली। थानेदार जी ने कष्‍ट के लिए क्षमा माँगी। सेठ जी ने फटाक से दे दी। पाँच दिन यही होता रहा। इन पाँच दिनों में सेठ जी के घर की औरतों ने लगभग पचास बार अपराधियों की शिनाख्त की। दोपहर के भोजन के समय, सोने के समय, पूजा के समय और रात के समय तो पक्‍का 10 बजे से तीन बजे के बीच तीन-चार बार थाने की जीप आती, घर की औरतें काँखती-कूँखती थाने जातीं। फिर वही पहचान कौन वाला एपीसोड खेला जाता। इन पाँच दिनों में सेठ जी के घर की औरतें बेजार हो गई। उन्‍होंने फैसला कर लिया कि लाखों की नकदी जेवर से ज्‍यादा कीमती चीज उनका चैन और नींद है। उन्‍होंने सेठ जी को फैसला सुनाया, सेठ जी ने फैसला थानेदार के कानों में ट्रांसफर कर दिया। रपट वापस लेने की बात कही, पर थानेदार जी कर्तव्‍यपरायण बंदे थे, काहे मानते। उन पर कर्तव्‍य-पालन, डकैत खोज अभियान, साहब खुश अभियान का भूत सवार था, ऐसे में रिपोर्ट वापस लेने का मतलब तो... बड़ा इल्‍लू-बिल्‍लू था। सो उन्‍होंने सख्‍ती से इनकार कर दिया। सेठ जी ने बहुत समझाया पर थानेदार नहीं माने। अब बड़े अफसरों को थानेदार जी को मनाना पड़ा।

उसी शाम सेठ जी का प्रार्थना पत्र आ गया कि वह एफआईआर वापस ले रहे हैं। उनके घर में डकैती हुई ही नहीं थी, वो तो घर के लड़कों ने मजाक किया था।

थानेदार ने उनके प्रार्थना पत्र को शीशे में फ्रेम कराकर थाने के मुख्‍य दरवाजे पर लगा दिया। अब वो हर फरियादी को उसे दिखाते।

हाँ उसी दिन रजिस्‍टर में एक और अपराध मुक्ति की एंट्री बढ़ी। इस बार इसको थानेदार जी ने सफल बनाया था।

सिपाही से दीवान जी, दीवान जी से दरोगा और दरोगा से थानेदार तक शाम को जुड़ते हैं। थानेदार हिसाब लगाता है कि अगर लूट, हत्‍या और आत्‍महत्‍या जैसी वारदातें रुक जाएँ तो एक दिन उनका थाना वास्‍तव में अपराध मुक्‍त थाना कहलाएगा।

जितने पुलिस थाने हैं, उतने ही दृश्‍य हैं। अपराध मुक्ति की रेल, थानों-चौकियों की पटरियों पर सरपट दौड़ रही हैं। प्रदेश को अपराधमुक्‍त करने में सिपाही से एसएसपी, आईजी तक सब जुटे हैं। सच! मुख्‍यमंत्री सच कह रहे थे। प्रदेश से अपराध सचमुच कम हो रहा है। आप क्‍या कहते हैं?


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